ग़रीबी का सम्बंध ..



 

उम्र से लम्बी सड़क पर..... 
कहने को अपनी अपनी किस्मत पर......

न जाने कौन है यह हुनरमंद हैं.....
न जाने कहाँ से ही यह आये.......
जो तमाम ग़म होने पर भी इतना प्यारा मुस्कुराए ॥

______________________________________
तन पे ग़रीबी की छाया ज़रूर है , कुछ मिल जाने की लालसा ज़रूर है लोगों से लेकिन  ये भी है की पेट की भूख चीज़ है ही ऐसी जो माँगने पे मजबूर कर देता है ।गलती इनकी नही ,गलती उस ग़रीबी की है गलती उस भूख की है जो सताती है इनको लेकिन इनके चेहरे को देख के लगता है की एक अमीरी इनके अंदर है ।पल भर के लिए इनको देख कि सब कुछ भूल के इनके मुस्कान पे ध्यान चला जाता है की इतना कुछ होते हुए भी ये हमें हसना सिखा रहे है ,जितना है उतने में संतुष्ट प्रतीत नज़र आ रहे है ।पर यहाँ मजबूरी स्पष्ट रूप से नज़र आ रही है ,मजबूरी इंसान को बहुत कुछ करने पे मजबूर कर देती है ।मजबूरी चीज़ ही ऐसी है की या तो ये इंसान को बिगाड़ देती है ग़लत रास्ते पे ले जा के या तो ये संवार देती ह बहुत कुछ सिखा के । ओर इस मजबूरी के पीछे सिर्फ़ ओर सिर्फ़ एक बेरोज़गारी का हाथ है ।बेरोज़गारी एक दिमक की तरह देश को अंदर से खोखला किए जा रहा है ।बेरोज़गारी ओर ग़रीबी एक दूसरे के directly प्रपोर्शनल हो गये है ।बेरोज़गारी की वजह से देश किस गर्त में जा रहा है ये लोगों को नही दिखायी पड़ रहा । ओर दिखायी भी क्यू पड़ेगा , जब तक खुद पे नही पड़ती या जब तक लोग खुद ठोकर नही खाते तब तक कहा सीखते है .


                     


बाज़ारवादी सोच की तैयार हो रही शिक्षा भी आज निन्म वर्ग के विश्वास को चकनाचूर कर चुके है। आने वाले समय में ये देश के भविष्य है ,  जिस तरह आग में तपने के बाद ही सोने की चमक ओर आकार बनती है इस तरह इनके जीवन में इतना संघर्ष है की ये कही भी किसी भी हालात में खुद को ढालने में सक्षम है । अगर ये आगे ईंट गारा करते है लेबर का काम करते है तो भी किसी का भला है और  पढ़ लिख के आगे बढ़ते है तो भी देश का भला ओर इनके मरने कि बाद भी अगर ये अपना अंग दान कर जाए तो भी किसी की जान बचायी जा सकती है ।

Comments

Popular posts from this blog

निवेदन

परिदृश्य : अजीब देश की सजीव कहानी