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परिदृश्य : अजीब देश की सजीव कहानी

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​ "विभीषिका ”अर्थ व अनर्थ दोनो में विचित्र है ।यदि यह अनर्थ के साथ वातावरण में फैल जाए तो जीवन कैसा होगा ,सोचिए मत । अमृतकाल के आनंद युग में मगन जनता अमृतवर्षा में नाच रही है । नृत्य की भाव विभोरता में नगनत्व में बदल रही है । महान देश के महान देवता की कृपा अनवरत बरस रही है।  अमृत वर्षा में स्वर्ण व रजत की  बूँदे देश की धरती को पड़पड़ा कर पीट रही है ।शेयर सूचिकांग जैसा इंद्रधनुष क्षितिज में टिमटिमा रहा है । विकासवादी हवा नथुनों को रगड़ रही है । चुनाव ,लोकतंत्र ईवीएम ,अम्बानी-अदानी, मीडिया-अदालत, ईडी- सीबीआईं जैसी आवाज़ें बादलों की तरह उमड़ घुमड़ रहे है । मेंढकों का एक ख़ास झुंड आकस्मिक अमृत वर्षा से नाराज़ होकर उछल -कूद मचा रहे है । अमृतवर्षा के स्पर्श से सभी गिरगिट मगरमच्छ जैसे दिख रहे है ।  चार पायदानो पर टिके लोकतंत्र के खंडहर के चारों तरफ़ गहरी खामोशी है । लोकतंत्र की इमारत पर वज्रपात जैसा हुआ है ।       ओह! विहंगम दृश्य "उड़ी छत-धंसी फ़र्श -फटी दिवार ,लोकतंत्र का खंडहर और स्तब्ध लोग । पक्ष और विपक्ष गुत्थम- गुत्था हो रहे है ।बहस और संवाद चिल्लाहट व...