धर्म कभी अधर्म नही करता
धर्म की महिमा से बड़ी , आज उसकी चर्चा है । सनातन , हिंदुत्व , संस्कृति , मंदिर , जैसे प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष अवयवों के साथ बाबा बागेश्वर की धूम मची है । एहसास होता है की धर्म , धर्म न होकर प्राणवायु बन गया है । है तो जीवित रहेंगे नही तो मार दिए जायंगे । धार्मिक आख्यानो में धर्म को स्वभाव रूप में समझ रहे थे या ‘धर्मों रक्षति रक्षित:’ ‘अथवा धारयति इति धर्म:’जैसी परिभाषाओं से धर्म की व्याख्या करते थे । आज के परिदृश्य में धर्म का कुछ विचित्र स्वरूप और विचित्र परिभाषा हमें सहमाती है । धर्म का पाखंड , आस्था बढ़ाने की बजाय निराशा पैदा कर रही है ।धार्मिक कठोरता इसकी मर्यादाओं को लांघ चुकी है । धर्म के नाम पर हत्या व बलात्कार का साक्षी तालिबानो के साथ मोनू मानेसर व मणिपुर भी है । भले ही हम स्वीकार नही करे लेकिन धार्मिकता के नाम पर किया जाने वाला गुनाह , धर्म के मर्म पर करारा प्रहार करता है । यदि ऐसा ही होता रहा तो धर्म विमुखीकरण धार्मिक नैराभ्य की प्रकिया से सैलाब पैदा हो जाएगा । जिस संस्कृति को स्थापित करने का प्रयास हो रहा है वह तार-तार हो जाएगी। ना सनातन बचेगा न बाबा बागेश्वर । कार...